तुलसी और भक्ति

तुलसीदास भारतीयता के प्रतीक हैं। उन्होंने भारतीय दर्शन, धर्म और साहित्य की जो प्रतिष्ठा अपनी रचनाओं में की है, वह किसी साहित्यकार द्वारा संभव नहीं हो सकी।

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कैदी की खेती

हरिप्रसन्न कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य था या नहीं, इस प्रश्न का जवाब नहीं दिया जा सकता। पर वह ऐसी बातें तो जरूर ही किया करता था, जो तिलमिला देने वाली थीं।

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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

अपने रूप और वेष दोनों में वे इतने अधिक राष्ट्रीय हैं की भीड़ में मिल जाने पर शीघ्र ही खोज नहीं निकाले जा सकते।

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नरनाहर निराला

“जिस समय रवींद्र का घोड़ा बंगाल से छूटा तो उसकी रास थामने की हिम्मत किसी में नहीं थी। लेकिन मैंने ही उस घोड़े को थाम लिया।...हमारा यह जो रंग है वह असल रंग नहीं। यह तो धूप में काला हो गया है।...इसका, बहुत लंबा हिसाब-किताब है।”

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