‘दारिद दुष्टन को गहि काढ़ौ’

हिंदी काव्य के साथ जो दुर्व्यवहार पिछले वर्षों में हुआ उसका दुष्परिणाम यह निकला कि लोग केशव को भूल से गए और शिक्षाक्रम में हिंदी को स्थान मिला भी तो लोग उनकी बहुछंदी रचना रामचंद्रिका का ही अध्ययन-अध्यापन करते रहे।

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साहित्य सेवा

एक साप्ताहिक के दफ्तर में एक युवक काम कर रहा है–उसकी वेश-भूषा तथा परेशान-बेहाल चेहरा बता रहे हैं कि गरीब की क्या हालत है ।

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लाजू आया, लाजू आया

मेरी कल्पना प्राचीन इतिहास के उस युग में खो गई, जब सर्वप्रथम पूर्व की ओर से, ईसवी सन् के आरंभ में, सिथियन लोगों ने भारत में प्रवेश किया था।

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वृंदावन

वृंदावन लाल वर्मा का मेरा साथ तीस-पैंतीस बरसों का है। वे मुझे बड़ा भाई मानते हैं, ‘भाई साहब’ कहते हैं, और मैं उन्हें ‘वृंदावन’ कहता हूँ।

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