समाहित कर ले

समाहित कर ले तू इनमें अगर किरदार का जादू तो फिर सर चढ़ के बोलेगा तेरे अशआर का जादूकभी सोचा नहीं था इस तरह नींदें उड़ाएगा हकीकत का मेरे ख्वाबों से हर इकरार का जादूमैं तेरे ध्यान के फूलों को अपने दिल में रखता हूँ मेरी हस्ती में शामिल है तेरी महकार का जादू

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गढ़ता है सब निर्विकार-सा

गढ़ता है सब निर्विकार-सा कोई तो है ही कुम्हार-सावर्ना जिह्वा मौन धार ले शब्द झरे तो हरसिंगार-सादुख में होता है उदास मन सुख में बज उठता सितार-सा

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आदमी टिकता कहाँ है बात पर

आदमी टिकता कहाँ है बात पर झट बदलता है फकत हालात परठीक है, वो कह गया भाषण में जो पर भरोसा क्या हो गिरगिट-जात परहो गई तब से खयालों की कमी वार जब से है हुआ जज्बात परवो तो बम, पिस्टल लिए था घूमता

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दिखाई दे रही है उसमें ख्वाब

दिखाई दे रही है उसमें ख्वाब की सूरत अँधेरी जिंदगी में आफताब की सूरतहरेक सिम्त पे बिखरी ख्याल की खुशबू छुपा के रखता है वो इक गुलाब की सूरतवो मेरी मुश्किलों में मेरे साथ रहता है

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मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में

मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में कैसे जानें, क्या है, कब, किसके दिल मेंलगता था ऊँचे घर का पहनावे से बोला ज्यों ही बदला वो फिर जाहिल मेंदो कदमों पर थककर यूँ रुकने वाले दूरी काफी बाकी अब भी मंजिल में

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पहले वो अपना जाल रखते हैं

पहले वो अपना जाल रखते हैं हर सू कुछ दाने डाल रखते हैंआए हैं दुश्मनी निभाते जो दोस्ती की मिसाल रखते हैंउनकी बातों में झूठ क्या ढूँढ़ूँ पास जो काली दाल रखते हैं

और जानेपहले वो अपना जाल रखते हैं