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 कुलटा!

कुलटा!

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:गद्य धारा
  • Post comments:0 Comments

...बोल उठी–“यह पुराना ठग है बाबूजी। एक नंबर का लफ़ंगा, बेईमान...!” अब उस स्त्री की ओर स्वभावत: मेरा ध्यान आकृष्ट हो गया।

और जानेकुलटा!
 मधुप्रभात

मधुप्रभात

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

प्रात की किरणें सुनहली हिलीं वंदनवार बनकर

और जानेमधुप्रभात
 जय-हार

जय-हार

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जय-माला में हार हमारी मोती बन-बन गुँथती जाती!

और जानेजय-हार
 मैं वनमाली अपने वन का!

मैं वनमाली अपने वन का!

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मैं वनमाली अपने वन का!

और जानेमैं वनमाली अपने वन का!
 कल्पना के चरण

कल्पना के चरण

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

पंथ खोजा किए कल्पना के चरण

और जानेकल्पना के चरण
 तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!

और जानेतेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!
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