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 ठाकुरोपनिषद्

ठाकुरोपनिषद्

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तुम्हारे नयन-रथ में ही सूर्य सवार हो कर भ्रमण करेंगे : जगत-पहिया खोजने के लिए ।

और जानेठाकुरोपनिषद्
 राह हमारी गुजर गयी है !

राह हमारी गुजर गयी है !

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बहुत करीब तुम्हारे घर से राह हमारी गुजर गयी है !

और जानेराह हमारी गुजर गयी है !
 एक प्रश्न ?

एक प्रश्न ?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

प्राण ! पलकों में थिरकती प्रीत सी प्रिय प्रवासी के अधर के गीत सी

और जानेएक प्रश्न ?
 मृगजल

मृगजल

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

आज तो कुछ भी नहीं है याद ! जिंदगी किस स्वप्न के कारण

और जानेमृगजल
 धरती का धूसर रंग

धरती का धूसर रंग

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

आज की अनमनी-सी साँझ, हवा यों नहीं थी

और जानेधरती का धूसर रंग
 तुम हो कौन छिपे गहरे में ?

तुम हो कौन छिपे गहरे में ?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तुम हो कौन छिपे गहरे में ? पाया नहीं लाख चेहरों में

और जानेतुम हो कौन छिपे गहरे में ?
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