कैकेयी
माइकल मधुसूदन ने ‘मेघनादवध’ काव्य की रचना करके कहा था–‘मेघनादे जयडालि : लक्ष्मणेर मुखे कालि!’ ‘प्रभातजी ने अपने ‘कैकेयी’ काव्य में कैकेयी का चित्रण उसी प्रकार एक विलक्षण ढंग से किया है। यहाँ कैकेयी का नैश चिंतन देखिए–
माइकल मधुसूदन ने ‘मेघनादवध’ काव्य की रचना करके कहा था–‘मेघनादे जयडालि : लक्ष्मणेर मुखे कालि!’ ‘प्रभातजी ने अपने ‘कैकेयी’ काव्य में कैकेयी का चित्रण उसी प्रकार एक विलक्षण ढंग से किया है। यहाँ कैकेयी का नैश चिंतन देखिए–
वर्तमान हिंदी आलोचना को कई वादों में विभक्त किया जा सकता है–रसवाद, प्रगतिवाद, यौनवाद, प्रशंसावाद, काव्यवाद, उद्धरणवाद और अंतत: आतंकवाद। इन वादों की एकांगिता से हिंदी-साहित्य की किस प्रकार अपार क्षति हो रही है इसे सुधी लेखक की लेखनी से ही देखिए–
प्रचलित कहावत है ‘आदमी सामने रखता है, भगवान अस्वीकार करता है। ज़ीद ने इसे उलट दिया है। ज़ीद के अनुसार आदमी, कलाकार के रूप में, भगवान की सृष्टि में से वह चीज चुन लेता है जिसे वह कला में परिवर्तित करेगा।