आलोचना के नाम पर

वर्तमान हिंदी आलोचना को कई वादों में विभक्त किया जा सकता है–रसवाद, प्रगतिवाद, यौनवाद, प्रशंसावाद, काव्यवाद, उद्धरणवाद और अंतत: आतंकवाद। इन वादों की एकांगिता से हिंदी-साहित्य की किस प्रकार अपार क्षति हो रही है इसे सुधी लेखक की लेखनी से ही देखिए–

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आंद्रे ज़ीद

प्रचलित कहावत है ‘आदमी सामने रखता है, भगवान अस्वीकार करता है। ज़ीद ने इसे उलट दिया है। ज़ीद के अनुसार आदमी, कलाकार के रूप में, भगवान की सृष्टि में से वह चीज चुन लेता है जिसे वह कला में परिवर्तित करेगा।

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