शबनम की जंजीर

हाँ, प्रतिमाएँ तो बन गई हैं–किंतु उनमें दम कहाँ, जान कहाँ? उनमें प्राण-प्रतिष्ठा होनी चाहिए–किंतु करे कौन? कलाकार हुंकार कर रहा है–‘विज्ञान काम कर चुका, हाथ उसका रोको!’ हाँ, हाँ, प्रयोग के लिए ही सही, ‘कला-कल्याणी’ को भी एक अवसर दिया जाना चाहिए।

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हमें यह कहना है!

लीजिए, यह ‘नई धारा’। मैं इसके संबंध में क्या कहूँ? अपने तीस वर्षों के पत्रकार-जीवन की परिणति के रूप में इसे हिंदी-संसार के समक्ष पेश करना चाहता हूँ। किंतु, पहले अंक में ही कई स्थाई शीर्षक छूट गए; कई उपयोगी लेख छूट गए। समय और स्थान की खींचातानी। इसके बावजूद यह जो कुछ है, आप लोगों की सेवा में है।

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डिरी डोलमा (भ्रमण)

“मेरी आँखों के सामने था–गौरीशंकर का वही शृंग। इस समय भी उसने अपनी बाँहें दो चोटियों के कंधों पर फैला रखी थीं। वे दोनों माँ-बेटी सी दिखती थीं। उन्हें पहचानने में मैं भूल नहीं कर सकता था। वहाँ दाहिनी ओर वाली ही थी–मेरी डिरी डोलमा!”

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प्रेमचंद जी का पत्र

प्रिय भाई साहब, वंदे आपका पत्र कई दिनों से आया हुआ है। पहले तो कई बारातों में जाना पड़ा, फिर नैनीताल जाने की जरूरत पड़ गई।

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आठ दिन

संध्या समय पटना पहुँच गया। ऊब उठा हूँ–गया से पटना, पटने से गया। गंगा-तट पर गया। बैठा रहा। गोधूलि और गंगा की शांत-शोभा। निर्जन घाट पर बैठा हूँ–देख रहा हूँ, पाल ताने कुछ नाव दूर पर जा रही हैं। उस पार का दृश्य कितना मनोहर है। मैं मानो स्वप्नलोक में बैठा हूँ–जहाँ रंग है, रूप है, गंध है; किंतु स्पर्श नहीं है, शब्द नहीं है। मैं स्पर्श और शब्द को पसंद नहीं करता। शांत गंगा तट से लौट पड़ा–माँ की गोद से उतर कर धूल-भरी धरती पर चलने-फिरने लगा। ‘पटना मार्केट’ की जगमगाहट! राम-राम!! मानव प्रयत्न करके शोर-गुल और अशांति का निर्माण करता है। भगवान ने निश्चय ही किसी नरक का निर्माण नहीं किया; किंतु यह काम मानव बड़ी तत्परता से करता रहता है–मानव महाशय, आप धन्य हैं। आप इस दुनिया को मिटाकर ही दम लेंगे। होटल का शांत एकांत कमरा। 1 बजे रात तक पढ़ता रहा–बलदेव उपाध्याय का ‘भारतीय साहित्यशास्त्र’–एक स्वस्थ ग्रंथ है; किंतु में उपाध्याय जी के बहुत से सिद्धांतों को स्वीकार नहीं कर सकता–यह मेरा ही दुर्भाग्य है।

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कैकेयी

माइकल मधुसूदन ने ‘मेघनादवध’ काव्य की रचना करके कहा था–‘मेघनादे जयडालि : लक्ष्मणेर मुखे कालि!’ ‘प्रभातजी ने अपने ‘कैकेयी’ काव्य में कैकेयी का चित्रण उसी प्रकार एक विलक्षण ढंग से किया है। यहाँ कैकेयी का नैश चिंतन देखिए–

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