संस्मरण वृद्धावस्था का विषय है
डॉ. कान्तिकुमार जैन पेशे से अध्यापक और फितरत से संस्मरणकार के अनुसार जो न्याय नहीं कर सकते उन्हें संस्मरण नहीं लिखने चाहिए।
डॉ. कान्तिकुमार जैन पेशे से अध्यापक और फितरत से संस्मरणकार के अनुसार जो न्याय नहीं कर सकते उन्हें संस्मरण नहीं लिखने चाहिए।
तुम क्या दे देते हो जो कोई नहीं दे पाता दो भींगे शब्द जो मेरे सबसे शुष्क प्रश्नों का उत्तर होती हैं तुम मुझसे ले लेते हो तन्हा लम्हें और मैं महसूस करती हूँ एक गुनगुनाती भीड़ खुद के खूब भीतर
मैं आजकल बाजार से दृश्य लाता हूँ समेट कर आँखों में भूल जाता हूँ खर्च कितना किया समय? झोली टटोलती उँगलियों को आँखों के सौदे याद नहीं रहतेमैं पढ़ता जाता हूँ वह अनपढ़ी रह जाती है
डॉ. नायर सरलचित्त-रचनाधर्मी थे, वे अंतिम साँस तक ‘नई धारा’ के माध्यम से उत्तर और दक्षिण भारत के शब्दसेतु बने रहे!
अचानक एक अजनबी का बिना मास्क लगाए करीब बैठकर फोटो खिंचवानेवाली बात को वह चटखारे ले-लेकर देर तक सुनाता रहा...।
चुप क्यों हैं जवाब दीजिए न...कुछ तो बोलिए...आप चली गईं क्या...आप हैं नहीं क्या? गहरी-गहरी साँसें तो सुनाई दे रही हैं!