साहित्यिक परिदृश्य की पड़ताल
अगर आप समय के साहित्य, समाज को जानना चाहें–राधेश्याम तिवारी के कवि से मिलना चाहें तो ‘कोहरे में यात्रा’ जरूर पढ़ें।
अगर आप समय के साहित्य, समाज को जानना चाहें–राधेश्याम तिवारी के कवि से मिलना चाहें तो ‘कोहरे में यात्रा’ जरूर पढ़ें।
हर तरफ स्त्री आदर्श बनने की होड़ में लगी हुई हैं–आदर्श माँ, बहन, बेटी, बहू, दोस्त, सास, पत्नी व प्रेमिका। मेरी नजर में तो सबसे अनूठा रिश्ता होता है सास और बहू का।
बरसों की घुटन शोक-संदेश से बाहर निकल–जी चाहा कोरोना की परवाह न करें...और भागकर बचपने में वापस लौट जाएँ।
काँच की मानिंद टूटे छन्न से सब ख्वाब। इस तरह उपभोग तक होते रहे नीलाम। पी गए हमको समझ दो इंच की बीड़ी।बढ़ गए कुछ लोग कंधों को बना सीढ़ी।
सौगातों को दे आमंत्रण फैला कर झोली। नेह पगे अंतर अब उच्चारें आखर ढाई। दीवाली आई।फुलझड़ियों से नित्य नेह के सुंदर फूल झरें। वंचित, शोषक की कुटिया में चलकर दीप धरें।
हँसी-खुशी आका को बोलो कब भाती। राज़ करो फूट डाल नीति ही सुहाती।बात रही इतनी सी फरमाना गौर।कौन यहाँ सच कहने सुनने का आदी। पीटे जा राज़ पुरुष जोर से मुनादी।