मनुहार

पुण्य जन्मों का, फला तो छट गई मन की व्यथा जिंदगी की पुस्तिका में, जुड़ गई नूतन कथा।ठूँठ-सा था मन महक, संदल हुआ।वेद की पावन ऋचा या, मैं कहूँ तुम हो शगुन मीत! मन की बाँसुरी पर छेड़ते तुम प्रेम धुन।

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समकालीन ग़ज़ल और अनिरुद्ध सिन्हा

हिंदी ग़ज़ल को हिंदी कविता के समानांतर स्थापित करने में ऐसे बड़े ग़ज़लकारों में अनिरुद्ध सिन्हा का नाम सर्वोपरि है।

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पतझरों का मौसम है

पतझरों का मौसम है पत्तियाँ नहीं मिलतीं गुल नजर नहीं आते तितलियाँ नहीं मिलतीबस्तियों में दहशत है लोग हैं डरे सहमे अब खुली हुईं घर की खिड़कियाँ नहीं मिलतीं

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रात भर जागा हूँ

ख्वाब है तो ख्वाब जैसा ही रहे भीड़ का बन जाए ये परचम नहींखुद पे जाने कब तुझे हँसना पड़े गम निभा लेने का तुझमें दम नहींतेरा कहलाने का मतलब ये न था तू ही तू में ही रहें, हम, हम नहीं

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यह भी एक जीद है

दुनियादार दोस्त कहते थे यह सोचना भी एक पागलपन है रात में देर तक जागते हुए सोचना खतरनाक है सेहत के लिएफिर भी एक जिद है जागते रहने और सोचने की

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नजरिया

जानता हूँ सब कुछ जो इन दिनों घटित हो रहा है ठीक नहीं है बावजूद इसके भरोसा है सच के पक्ष में पूरी मजबूती से खड़ेन हारने वाले शब्दों

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