लोक संस्कृति के विस्तार की कहानियाँ

उत्तर आधुनिकता और बाजारवाद के इस अधम दौर में ऋता शुक्ल की कहानियाँ ग्रामगंधी संस्कृति के अजेय शिलाखंडों से अठखेलियाँ करती किसी पहाड़ी नदी की स्वाभाविक तरंगों को साकार करती हैं। ग्रामभित्तिक जमीन पर सांस्कृतिक वैभव के साथ नारी विमर्श की अंतरंग छवियाँ उकेरने वाली ऐसी कहानियों की प्रजाति इधर अनुपलब्ध होती जा रही हैं। चित्रा मुद्गल, ऋता शुक्ल, नासिरा शर्मा, सूर्यबाला जैसी कुछ महिला कहानीकारों के यहाँ यह वैभव अभी भी सुरक्षित है, तभी उनकी कहानियाँ जैसे एक लुप्तप्राय लोक की यात्रा कराती हैं।

और जानेलोक संस्कृति के विस्तार की कहानियाँ

कविताओं में सामयिक यथार्थ

मानव जीवन की विविध घटनाओं का मार्मिक चित्रण अशोक चक्रधर के साहित्य का आधार है। उनकी अधिकांश कविताओं में मर्मांतक पीड़ा पहुँचाने वाले जीवन-प्रसंगों का वर्णन हुआ है। कहीं वह दहेज से जुड़ी हुई समस्याओं को दृश्यों में रूपायित करते हैं तो कहीं बेरोजगारी के भयानक दृश्यों को दिखाते हैं। सांप्रत समाज में फैली हुई कूटनीतियों, बढ़ती हुई अमानवीयता, पारस्परिक द्वेष आदि की भयावहता से हँसाते-हँसाते परिचित कराते हैं। राजनीति पर लिखी गई उनकी रचनाएँ, उन कविताओं के समानांतर नहीं रखी जा सकती, जो नेताओं को हास्य का विषय बना कर सतही ढंग से लिखी गई हों। नेताओं पर यदि वह व्यंग्य भी कर रहे होते हैं तो उसमें उनकी संविधान की समझ होती है।

और जानेकविताओं में सामयिक यथार्थ

फर्क क्या हम में है

1947...भारत! हाँ, देश अपना आजाद हुआ पर कुछ अपने पीछे छूट गए! मिलकर देश आजाद किया फिर दो हिस्सों में बँट गए न वजह मालूम है न मजबूरी का है पता बस बनाकर धर्म को ढाल देश अपना दो हिस्सों में बँट गया!

और जानेफर्क क्या हम में है

केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में प्रेम

मानव जीवन में ‘प्रेम’ एक अनिवार्य तत्त्व है। वह मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों में से एक है। प्रेम का जीवन में वही स्थान है जो आत्मा का शरीर में। आत्मा बिना शरीर निष्प्राण होता है, प्रेम बिन जीवन। जीवन में प्रेम रूपी रस का संचार न हो तो जीवन में संबंधों की डोर नीरस, सूखी और कमजोर हो अंततः टूट जाती है।

और जानेकेदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में प्रेम

माँ

नदी में नहाने के क्रम में दस-ग्यारह साल का एक लड़का भूल से अधिक गहराई में चला गया और डूबने लगा। किनारे खड़े लोगों ने शोर मचाया–‘अरे देखो वो लड़का डूब रहा है कोई बचाओ...।’ ‘अरे! हाँ भाई जल्दी कोई उपाय करो वरना डूब जाएगा...।’ दूसरे व्यक्ति ने पहले की बात को कुछ और लोगों तक पहुँचाया। तभी किसी और इधर-उधर देखकर जोर से बोला–‘अरे! अभी तो उसकी माँ यहीं थी, कहाँ गई, बुलाओ उसे...।’

और जानेमाँ