लोक संस्कृति के विस्तार की कहानियाँ
उत्तर आधुनिकता और बाजारवाद के इस अधम दौर में ऋता शुक्ल की कहानियाँ ग्रामगंधी संस्कृति के अजेय शिलाखंडों से अठखेलियाँ करती किसी पहाड़ी नदी की स्वाभाविक तरंगों को साकार करती हैं। ग्रामभित्तिक जमीन पर सांस्कृतिक वैभव के साथ नारी विमर्श की अंतरंग छवियाँ उकेरने वाली ऐसी कहानियों की प्रजाति इधर अनुपलब्ध होती जा रही हैं। चित्रा मुद्गल, ऋता शुक्ल, नासिरा शर्मा, सूर्यबाला जैसी कुछ महिला कहानीकारों के यहाँ यह वैभव अभी भी सुरक्षित है, तभी उनकी कहानियाँ जैसे एक लुप्तप्राय लोक की यात्रा कराती हैं।