परवशता के विरुद्ध जिजीविषा के स्वर
भोला पंडित ‘प्रणयी’ के जीवन और उनकी पुस्तकों को देखना उनके जीवन में उतरने जैसा है। उनके साहित्य की पृष्ठभूमि प्रायः उनके जीवन के समानांतर है। इसलिए उसकी सजीवता तो असंदिग्ध है ही, यदि वह अयथार्थ लगे, तब भी यथार्थ है। उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ, खंडकाव्य और अध्यात्म चिंतन में सृजनरत भोला पंडित ‘प्रणयी’ के लेखन की विशेषता निरंतरता है, यह भी उसी प्रकार है कि व्याघातों में उलझे मनुष्य ने अपने जीवन-अधिकार की कामना नहीं छोड़ी।