‘होना’ और ‘रहना’ के साहित्यिक संदर्भ
अच्छा हुआ मुक्तिबोध कवि सम्मेलन मंचों पर अधिक नहीं आए। उन्हें कविताएँ आसान करनी पड़तीं और यदि ऐसी, समझ में आने वाली यही कविता भी सुनाते, तो काट दिए जाते, साहित्य से, पाठ्यक्रमों से, संगोष्ठियों से। ये कवि नहीं हैं, ये मंच का है, इसको हमारे साथ होने का अधिकार नहीं है। अच्छी बात ये है कि अच्छी चीजें सदा रहती हैं, आगे भी रहेंगी।