दर्पण की आत्मकथा
मुझे लोग दर्पण के नाम से पुकारते हैं। मैं अति स्वच्छ व निर्मल हूँ। जो जैसी सूरत लेकर मुझ में झाँकेगा वह वैसी ही पाएगा। स्वरूप का दर्शन कराना ही मेरा काम है।
मुझे लोग दर्पण के नाम से पुकारते हैं। मैं अति स्वच्छ व निर्मल हूँ। जो जैसी सूरत लेकर मुझ में झाँकेगा वह वैसी ही पाएगा। स्वरूप का दर्शन कराना ही मेरा काम है।
‘युवक’ के साथ ही फिर मेरा जीवन घोर राजनीति का शुरू होता है, अत: उसे प्रारंभ करने के पहले मैं उन साहित्यिक गुरुजनों और साथियों की चर्चा कर लेना चाहता हूँ
यह विश्व वैलक्षण्य तथा विरोधी भावों का एक समष्टि-रूप है जिसके काँटे में पुष्प, अंधकार में प्रकाश, रोदन में हास, संयोग में वियोग एवं विराग में अनुराग है।
वह इसके लिए पैदा नहीं हुई थी। कई बार इस दलदल से निकलने की उसने कोशिश भी की। मधुपुरी सवा सौ वर्ष पुरानी विलासनगरी है, उसके पहले वही लोग यहाँ के घने जंगलों में अपने पशुओं को चराते थे, जो अब भी उसकी सीमा के बाहर अपने छोटे-छोटे गाँवों में रहते हैं।