पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!

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अपनी-अपनी गाँठ

मंजु के चेहरे पर एक रंग आ रहा है, एक रंग जा रहा है। आसमान पर बादल छाए हैं। हवा तेज-तुंद है आज। लगता है, तूफान का जोर है। मगर पानी पड़े या पत्थर, अपनी ड्यूटी की पाबंदी जो बड़ी चीज ठहरी!

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शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण (पाँचवीं कड़ी)

जब शरतचंद्र बरमा से कलकत्ते आए थे तब अपने साथ वह एक कुत्ता भी लाए थे। जब लाए थे तब वह बहुत छोटा था, ऐसा उन्होंने मुझे बताया था। पर बाद में वह बहुत बड़ा हो गया था और एक खूँखार–किंतु बहुत ही बदसूरत–भेड़िए की तरह दिखाई देता था।

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पं. माधवराव सप्रे का व्यक्तित्व और पत्रकारित्व

मध्यप्रदेश की साहित्यिक, राजनीतिक और सामाजिक जागृति के प्रथम प्रहर में पं. माधवराव सप्रे का नाम अत्यंत आदर से लिया जाता है।

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वे अभी भी क्वाँरी हैं!

रेखा– (हल्की हँसी) कवि और कलाकार सचमुच पागल होते हैं, यह बात तो तुम्हें देखकर ही मान गई हूँ माधव!

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