तेलुगु शतक-साहित्य

शतक-साहित्य तेलुगु वाङ्मयोद्यान की एक सुंदर क्यारी है, जिसकी अनुपस्थिति में उक्त उद्यान की शोभा अपूर्ण ही रह जाएगी।

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हरिऔध जी का पत्र

छायावादी कवि कहा करते हैं, प्राचीन कवियों में न अनुभूति है, न सहृदयता। भावुकता तो उनमें छू नहीं गई है। उनकी दृष्टि में केशव, देव, बिहारी सब तुच्छ हैं, वे इन महाकवियों को फूटी आँख से नहीं देख सकते।

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लोक-रंगमंच का नवनिर्माण

एक विशाल वटवृक्ष के नीचे प्रत्यंचा की भाँति घुमावदार चबूतरा जिस पर मिट्टी के कलश चार दीपकों का भार सँभाले हुए अपनी चित्रित आशा में देदीप्यमान हो रहे थे। वृक्ष के दोनों ओर बाँस और ताड़ की चटाई के पर्दे जिनके पीछे शृंगार-कक्ष ‘ग्रीन रूम’ का आभास होता था। चबूतरे के सामने और पार्श्व में कुछ दरियाँ और चटाई।

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सियाना मालिक

सियाना मालिक नौकर रखता है, तो पहले उसका नाम और अता-पता पूछ लेता है। न केवल यह बल्कि उसकी पूरी-पूरी जाँच कर लेता है।

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