छत्तीसगढ़ के पर्व और लोकगीत
छत्तीसगढ़ की गरीब भोली-भाली निरक्षर जनता त्यौहारों को अत्यंत महत्त्व देती है। यही कारण है कि उनका गरीब जीवन शहरों के स्वर्गीय जीवन से भी अधिक आनंदमय होता है।
छत्तीसगढ़ की गरीब भोली-भाली निरक्षर जनता त्यौहारों को अत्यंत महत्त्व देती है। यही कारण है कि उनका गरीब जीवन शहरों के स्वर्गीय जीवन से भी अधिक आनंदमय होता है।
नींद में भीगा हुआ वह स्वर तुम्हारा–द्वार खोलो तिमिर-स्नाता रात–मैं पथ पर खड़ा हूँ, द्वार खोलो
हलुआ गरम, सूजी का हलुआ, घी चीनी का हलुआ’ गली में खोमचे वाले की आवाज और सुबह की धूप साथ ही उतरी। कातिक का महीना था।
काव्य और मंत्र दोनों की ही भित्ति, आश्रय-आधार है वाक्य,...वाक्य का वजन जब अधिक हो जाता है, वह चाहे कितना ही क्यों न हो, तब वह काव्य की कोटि में चला जाता है। और वाक्य का वजन जब संपूर्ण रूप से वाक्य के आश्रयी का वजन हो जाता है तब वह बन जाता है मंत्र!
प्रयोगवाद इत्यादि अन्य नामों से जो कोशिशें चल रही हैं वे मात्र टेकनिक की नूतनता से संबंध रखती हैं, विषयवस्तु से उसका बड़ा हल्का-सा संबंध है।
किसी धर्म का अपना साहित्य नहीं होता और हो भी नहीं सकता। इसलिए कि धर्म तो बँधे-बँधाए नियमों का नाम है, उसमें इतनी लचक कहाँ जो साहित्य जैसी विशाल वस्तु को अपने अंदर समेट कर रख सके।