छत्तीसगढ़ के पर्व और लोकगीत

छत्तीसगढ़ की गरीब भोली-भाली निरक्षर जनता त्यौहारों को अत्यंत महत्त्व देती है। यही कारण है कि उनका गरीब जीवन शहरों के स्वर्गीय जीवन से भी अधिक आनंदमय होता है।

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काव्य और मंत्र

काव्य और मंत्र दोनों की ही भित्ति, आश्रय-आधार है वाक्य,...वाक्य का वजन जब अधिक हो जाता है, वह चाहे कितना ही क्यों न हो, तब वह काव्य की कोटि में चला जाता है। और वाक्य का वजन जब संपूर्ण रूप से वाक्य के आश्रयी का वजन हो जाता है तब वह बन जाता है मंत्र!

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नए लेखक : नए विषय

प्रयोगवाद इत्यादि अन्य नामों से जो कोशिशें चल रही हैं वे मात्र टेकनिक की नूतनता से संबंध रखती हैं, विषयवस्तु से उसका बड़ा हल्का-सा संबंध है।

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धर्म और साहित्य

किसी धर्म का अपना साहित्य नहीं होता और हो भी नहीं सकता। इसलिए कि धर्म तो बँधे-बँधाए नियमों का नाम है, उसमें इतनी लचक कहाँ जो साहित्य जैसी विशाल वस्तु को अपने अंदर समेट कर रख सके।

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