डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी का पत्र

सारे भारत के लिए उर्दू अलफाज़ सर्वबोध्य नहीं हैं, हाँ, सिंध, पंजाब और पच्छाहें के कुछ संप्रदायों के लिए हो सकते हैं। पर हम चाहते हैं कि बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, ओड़िशा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्णाटक और केरल भी बिना कोशिश किए हुए हिंदी को अपना लें; यह काम संस्कृतानुसारी हिंदी ही की मदद से हो सकता

और जानेडॉ. सुनीति कुमार चटर्जी का पत्र

साँवरिया पहाड़िया और उनके लोकगीत

दूर पहाड़ों से आने वाली रोशनी के साथ सैकड़ों कंठों से निकलने वाली मोहक आवाज ने अगर कभी आपका ध्यान खींचा होगा, तो दूसरे ही क्षण आपको समझते देर न लगी होगी कि जंगल के रहने वाले उत्सव मना रहे हैं

और जानेसाँवरिया पहाड़िया और उनके लोकगीत

सेवाग्राम

सुबह का वक्त था। पूर्व में से काली कंबली वाले साधुओं की एक कतार, काले बादलों के रूप में, तारों की ज्योति में अपना रास्ता टटोलती हुई, पश्चिम की तरफ जाती दिखाई दी।

और जानेसेवाग्राम

तन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा!

तन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा!

और जानेतन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा!