प्रार्थना की पनाह में

भीषण धर्मयुद्धों के बाद भी फिर फिर लौटते रहे धर्म आर्द्र सुबह के मौन में प्रार्थना के ही पासप्रार्थना की भीगी कातर पुकार ने छुआ हर किसी का अंतरतर

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स्कूल बस्ते में

नए नए स्कूल और स्कूल बस्ते के आह्लाद के बीच आया पहला दिन छुट्टी का सारी किताबें उड़ेल कर एक ओर कह रही थी वो तुतलाती मचलती नचाती हुई

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सोचने और समझने की बात

मेरे रविदास मंदिर में कोई ब्राह्मण पूजा करने क्यों नहीं आता?पूजा करना तो दूर मेरे वाल्मीकि मंदिर की ओर कोई भी ब्राह्मण आँख उठाकर देखता तक नहीं!

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कलम और तलवार

कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वालीपैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारेलहू गर्म रखने को रक्खो मन में ज्वलित विचार हिंस्र जीव से बचने को चाहिए किंतु, तलवार

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कविता की तासीर

भर सकती है कविता धर्म की आँखों में थोड़ी करुणा पड़ोसी की आँखों में थोड़ा पानी सत्ता की आँखों में थोड़ी शर्म गरीब की आँखों में थोड़ी आस

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अभी थोड़ा जीना चाहता हूँ

जिंदगी की किताब के पन्ने अब थोड़े, बहुत थोड़े ही बचे हैं आँधियों में फड़फड़ाते अक्षर... काली विडंबनाओं से विकटाकार!नेपथ्य में कोई हँसा है बहुत जोर से परदे हिलते हैं

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