डार से टूटे हुए

‘भइया सतेन्द्रपाल ने जीवन भर समाज का साथ नहीं दिया। समाज रूपी डार से टूटे हुए लोग हैं ये! फिर आज समाज उनका साथ क्यों दे?’

और जानेडार से टूटे हुए

मधुकर गंगाधर की साहित्य-साधना

नया करने की प्रवृति के कारण ही मधुकर एक पात्र होते हुए भी तटस्थ दर्शक की भूमिका में दिखाई देते हैं।

और जानेमधुकर गंगाधर की साहित्य-साधना