खुशियों का व्यापार
ज्यों-ज्यों वह लड़की बड़ी होने लगी, त्यों-त्यों परिवार में एक बेफिक्री का आलम नजर आ रहा था। फिर भी, ऐसा क्या था जिस पर लड़की के बड़ी होने पर गाँववाले खुशियों से भरे-भरे थे।
ज्यों-ज्यों वह लड़की बड़ी होने लगी, त्यों-त्यों परिवार में एक बेफिक्री का आलम नजर आ रहा था। फिर भी, ऐसा क्या था जिस पर लड़की के बड़ी होने पर गाँववाले खुशियों से भरे-भरे थे।
‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ संग्रह की अंतिम कविता ‘अँधेरे में’ उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण कविता है।
अम्मा मुझे लग रहा है तुम अपनी साँसों को ही नहीं समेट रही हो, बहुत कुछ समेट रही हो। एक शख्सियत इस धरा से विदा लेती है तो उसके साथ एक युग, साम्राज्य, सत्ता, हुनर, तौर-तरीके, अनुभव, सूचनाएँ...बहुत कुछ विलुप्त हो जाता है।
एक बड़ी दुविधा में फँसा था वह। फिलहाल, नोटिस की अवहेलना करना उसका इरादा नहीं है...घड़ी से बढ़कर उनकी इज्जत दाँव पर लगी थी, उसने सोचा, और त्वरित ही घड़ी का भुगतान करने में ही उसकी भलाई है।
फिलहाल तो हारी हुई है बारबार पंजा चलाती यह उफनी हवा बंद कुंडियों से। और वह हादसे से बचे किसी भी स्वार्थी आदमी-सा भयभीत अपनी खैर का जश्न मना रहा है भीतर।
फिर-फिर जेठ तपेगा आँगन, हरियल पेड़ लगाये रखना, संबंधों के हरसिंगार की शीतल छाँव बचाये रखना।