प्रसाद की ‘कामायनी’
‘कामायनी’ को उसके इस पूरे परिप्रेक्ष्य और उसकी कथ्य-संरचना के साकल्य में देखने की अपेक्षा रही है और, जिसकी उपेक्षा प्रायः हिंदी के कवि-आलोचकों ने लगातार की है। इसका एक बड़ा कारण उपनिषद् और भारतीय दर्शन-विरोधी उनकी पूर्वग्रस्त धारणा रही है।