फाग सवैया
नीलम के सुचि खम्भ पै कै, मनि-मानिक-माल-प्रभा हिय हूलै कै निसि के कमनीय कलेवर, सूरज के करै जोति अतूलै ‘प्यारे’ किधौं जमुना जल पै, अरबिंद के बृंद लिखे मन भूलै स्याम सरीर पै सोहै गुलाल, कै किंसुक-माल तमाल पै फूलै।
नीलम के सुचि खम्भ पै कै, मनि-मानिक-माल-प्रभा हिय हूलै कै निसि के कमनीय कलेवर, सूरज के करै जोति अतूलै ‘प्यारे’ किधौं जमुना जल पै, अरबिंद के बृंद लिखे मन भूलै स्याम सरीर पै सोहै गुलाल, कै किंसुक-माल तमाल पै फूलै।
सैकड़ों मील चल कर गए लोग घर से निकल कर गएराह समतल न थी स्वप्न की इसलिए वो सम्हल कर गएउनकी आँखें छलकने लगीं दुःख के बादल विकल कर गए
‘आज अचानक न जाने क्या सोचकर मैं अपने को इधर आने से रोक नहीं सका। वर्षों पुराने इस रंगमंदिर की याद तो हमेशा आती है। सोचा आज उसे देख आऊँ। लेकिन अफसोस दीवारों पर न जाने कितने सालों से रंग नहीं चढ़ा है।
कोई शब्दों से संवाद करना चाहता है वे मौन हैं मौन के अंदर व्यथा, आक्रोश, मुस्कान तलाशता है वहाँ कुछ नहीं है शब्द दरवाजे उढ़का कर सो गए हैं
लाते हैं खुशियाँ ही खुशियाँ पूजा घर नहीं देखता बढ़ने लगी है आँधी उम्मीद की जैसे पास आने लगी खुशी की आहट
यत्न जिनके सफल हो गए झोंपड़ी से महल हो गएउनको छूना असंभव लगा जो समंदर के तल हो गए