बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला!
बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला! अनेक कण उठे मिले कि शृंग तुंग हो गया।
बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला! अनेक कण उठे मिले कि शृंग तुंग हो गया।
रोकर दिल बहला लेने दो। दिल-दरिया में तूफानों का
नहीं, नहीं, नहीं! पाप लगेगा। हमारा धर्म अहिंसा का है। हाँ, वैसे खून के बदले में उसे बेच कर सोना मिलता हो, तो एक-एक बूँद निकाला भी जा सकता है, मगर जरा आहिस्ता-आहिस्ता।
दुबले-पतले तेजस्वी व्यक्तित्व रखने वाले इस साधक का जीवन अवश्य रहस्यमय है, यह मुझे उसके इतने से कथन से ही पता चल गया।
लोकगीतों का अध्ययन करते समय प्रांत विशेष का समस्त हर्ष-विषाद, मान-अपमान सुख-दुख, धार्मिक विश्वास, रीति-रिवाज आदि सब हमारी आँखों में फिर जाते हैं।