बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला!

बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला! अनेक कण उठे मिले कि शृंग तुंग हो गया।

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पागलखाना

नहीं, नहीं, नहीं! पाप लगेगा। हमारा धर्म अहिंसा का है। हाँ, वैसे खून के बदले में उसे बेच कर सोना मिलता हो, तो एक-एक बूँद निकाला भी जा सकता है, मगर जरा आहिस्ता-आहिस्ता।

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श्री विष्णु प्रभाकर

दुबले-पतले तेजस्वी व्यक्तित्व रखने वाले इस साधक का जीवन अवश्य रहस्यमय है, यह मुझे उसके इतने से कथन से ही पता चल गया।

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पंजाबी लोकगीत

लोकगीतों का अध्ययन करते समय प्रांत विशेष का समस्त हर्ष-विषाद, मान-अपमान सुख-दुख, धार्मिक विश्वास, रीति-रिवाज आदि सब हमारी आँखों में फिर जाते हैं।

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