चार चिंताएँ
जो दिल ही समुंदर लहर भावना हो कहो चाँद मेरे! रुकें ज्वार कैसे? जो तैराक को ही हो तिनका बनाए
जो दिल ही समुंदर लहर भावना हो कहो चाँद मेरे! रुकें ज्वार कैसे? जो तैराक को ही हो तिनका बनाए
कबीर के काल में जहाँ विभिन्न दर्शन ब्रह्म, माया, संसार आदि के संबंध में अपने विभिन्न मत प्रगट कर रहे थे, वहीं सूफी प्रेम की धारा बहा रहे थे, इस्लाम का एकेश्वरवाद तलवार की जोर से चल रहा था, बौद्धों की शाखा हीनयान तथा महायान मुड़मुड़ाकर नाना प्रकार के मंत्रों का आडंबर रच रही थी और रामानंद जैसे महर्षि परम पुरुषोत्तम राम की महिमा गा रहे थे।
जब तक ब्रजभाषा किसी प्रांत की भाषा है, तब तक वह किसी के मारने से मर नहीं सकती। उसमें अब भी कविता होती है, और आगे भी होती रहेगी। उसका माधुर्य भी सर्वमान्य है।
इस प्रथम अंक में शरत् की उस मानसिक स्थिति का चित्रण है जब वह आत्म प्रकाश की दिशा ढूँढ़ रहे थे। बहुमुखी प्रतिभा हर तरफ जोर आजमा कर अपना रास्ता बना रही थी।