अपनी अपनी राह

आज पहाड़ी तराई में नदी के तट पर फिर आँखें चार होती हैं। बलदेव अकेला गंगा के तट पर बैठा है–अपने ही में खोया हुआ जैसे! अरुन के साथ एक गिरोह आ रहा है। कितने तो सर से पैर तक काट-पट में ऐन-फैन बन रहे हैं। जाने क्या-क्या सामान भी साथ है। मोटरों की तो शुमार नहीं।

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‘प्रसाद’ का जीवन-दर्शन

श्रद्धावाद तथा अखंड आनंदवाद के प्रतिष्ठापक हिंदी के अमर साहित्यकार ‘प्रसाद’ हिंदी साहित्य में ही नहीं, भारतीय साहित्य में ही नहीं अपितु विश्व-साहित्य में युग-युग तक अपना विशिष्ट स्थान रखेंगे।

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