एक सैर ओड़िशा की

आज मैं ओड़िसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में हूँ, जहाँ किसी समय में सात हजार मंदिर हुआ करते थे और जिन्हें सात सौ वर्षों में बनाया गया था। लेकिन अब 600 मंदिर ही बचे हैं जो कि अपने आप में अद्भुत हैं। दोपहर के भोजन के बाद हम राजकीय अतिथिशाला से निकल पड़े इन गुफाओं के दर्शन करने। भुवनेश्वर की चौड़ी सड़कों और सीधे-सादे शहर के दिल में उतरना एक सुखद अहसास रहा। सबसे पहले हम जा पहुँचे शहर को अपनी गोद में लिए उन पहाड़ियों के पास जहाँ की चट्टानें अपने आगंतुकों का स्वागत करने को बेचैन थीं।

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नींव कितनी भी ली बड़ी हमने

नींव कितनी भी ली बड़ी हमने की तो दीवार ही खड़ी हमनेवक्त का जो मिजाज भी कह दे अब लगा ली है वो घड़ी हमनेहम जहाँ रोज आके मिलते थे जंग अक्सर वहीं लड़ी हमने

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रेतीले टीले

रेतीले टीले उपेक्षा, अवज्ञा, अस्वीकृति से क्या डरना एक अनजान भय कि छतरी को खोल कर क्यों चलना जीवन के मोड़ सड़कों की तरह स्पष्ट नहीं होते कोई सूचना पट भी नहीं लगा होता कि आगे तीव्र मोड़ है रफ्तार धीरे कर लें

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सोखोदेवरा : एक तीर्थ से गुजरते हुए

लोकनायक जयप्रकाश उनके उस अधूरे कार्य को पूरा करने में आजीवन लगे रहे। इसलिए भारतीय जन-मानस में जयप्रकाश दूसरे गाँधी के रूप में दिखाई पड़ते हैं। मैं खुद को भी उन लाखों-करोड़ों लोगों में मानता हूँ, जो गाँधी और जयप्रकाश के प्रति वास्तविक श्रद्धा रखते हैं। इसलिए जीवन में जब कभी भी मौका मिला, साबरमती, वर्धा, सेवाग्राम आदि जगहों में गाँधी और जयप्रकाश की उस मनोवृति का दर्शन करने जाता रहता हूँ, जिसने रचनात्मक कार्यकर्ताओं की एक समृद्ध टोली तैयार की थी।

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वंसत का राग-रंग

समय देखता रहेगा! लोगों की फाग-मस्ती परवान चढ़ती ही रहेगी! हाँ, महानगरों में इस मस्ती का एहसास थोड़े विलंब से होता है,

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स्त्री मनोभाव की कविताएँ

सत्या शर्मा की कविताएँ अनुभव की उपज है जिसमें यथार्थ के साथ ही स्त्रियों की बेचैनी और स्वतंत्रता की अभिलाषा है।

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