मेरी कविता मुझसे करती है सवाल

तुम कैसे हो मधुकर बाबूलाल अब तुम मुझ से नाता तोड़ो भूखे मरने से अच्छा है और कहीं जाकर नाता जोड़ो मैंने हरदम तुमको तंग किया है तुमसे हरदम जंग किया है फिर भी तुमने हार नहीं मानी

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हलधर जाग गया है

हलधर जाग गया है हाँ, हलधर जाग गया है शुभद्र घर-आँगन बुहारकर हाथ में झाड़ू लेकर अपनी सखियों और पड़ोसियों को लेकर जुम गई हैं कांधा भी जंग लगा सुदर्शन को साफ कर रहा है

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सिरफिरा जनगणना अधिकारी

सभी उसे कहते हैं गलबा अगर हवेली में जन्मा होता तो आदर से पुकारते गुलाबजी पसीना गुलाब की तरह महकता हवेली की मजबूत दीवारें

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बचा रहे औरत का चिड़ियापन

मौसम आ गया है फिर से पत्नी और चिड़िया के बीच नोंक-झोंक का पत्नी घर सँवारने की जिद्द में उजाड़ देती है घोंसले चिड़ियाँ

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