ओड़िया समाज के मानवोत्थान की कहानियाँ

गौरहरि दास की कहानियाँ, दो भिन्न पीढ़ियों में हो रहे बदलाव को रेखांकित ही नहीं करता, उनके बारीकियों को सामने लाता है।

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दलित वैचारिकी की कसौटी एवं श्यौराज सिंह बेचैन का साहित्य

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि श्यौराज सिंह बेचैन का पूरा साहित्य दलित साहित्य की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरता है।

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दलित चिंतन की मौखिक परंपरा

यह ‘मुखहिं जनाई बात’ ही दलित चिंतन की ‘मौखिक परंपरा’ रही है। अब प्रश्न उठता है कि दलित चिंतन की यह मौखिक परंपरा आई कहाँ से है? दलितों की यह मौखिक परंपरा महान आजीवक मक्खलि गोसाल से आई है।

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नंदकिशोर नवल एक राजनीतिक आलोचक

डॉ. नवल ने लिखा–‘हिंदी का क्षेत्र बहुत विस्तृत है, लेकिन अभी उसमें आलोचना की एक भी उल्लेख योग्य पत्रिका प्रकाशित नहीं हो रही

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फणीश्वरनाथ रेणु मानव मुक्ति के कथाकार

रेणु की कहानियों का परिवेश और प्रकृति दर्शाता है कि ‘रेणु’ में बचपन से ही कहानी गढ़ने की कला थी।

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