प्रसाद की ‘कामायनी’

‘कामायनी’ को उसके इस पूरे परिप्रेक्ष्य और उसकी कथ्य-संरचना के साकल्य में देखने की अपेक्षा रही है और, जिसकी उपेक्षा प्रायः हिंदी के कवि-आलोचकों ने लगातार की है। इसका एक बड़ा कारण उपनिषद् और भारतीय दर्शन-विरोधी उनकी पूर्वग्रस्त धारणा रही है।

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दलित चिंतन की स्वतंत्रता

दलित चिंतन में सामूहिकता नहीं है तो वह दलित चिंतन नहीं है। उसे इस अभिशाप का सामना इस रूप में करना है कि वह बहुतों के लिए काम कर रहा है। परोपकारी मनुष्यों के लिए यह सुखद स्थिति है। दुनिया में कोई आदमी अकेला नहीं है।

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जहर

बहुत दूर तक नहीं जाना है आसपास ही देखना है बगल में सहमी-सहमी खड़ी हवा को छूना है समझने के लिए कि जहर क्या होता है

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भीड़ के नाम हो जाएँगे

भीड़ के नाम हो जाएँगे रास्ते जाम हो जाएँगेघूस देने से तो आज भी आपके काम हो जाएँगेरात भर नींद आती नहीं कैसे आराम हो जाएँगे

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काला कैक्टस और माँ

‘सबने सब कुछ तो खतम कर दिया...।’ फिर वह काला कैक्टस किसी का चेहरा बन रहा है। उसकी भारी-सी आवाज में गजब का आकर्षण हैं...। मैं परेशान होकर टूटे दरवाज़े को देखता हूँ। शैलजा और सुरभि सामान अंदर ला रही हैं।

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