नदी की उत्तर-आधुनिकता

धाराएँ सदा एक-सी नहीं होतीं कई बार उसकी ध्वनियाँ आर्त्त-नाद होती हैं सहमी तरंगों की  सूखते जल गवाह हैं

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पोस्टमार्टम

तेरहवीं तक हलचल तो रही परंतु एक मर्यादित चुप्पी के साथ। लखनऊ वाले चाचा जी बोर हो गए थे। साथ लाई ‘सत्यकथा’ पढ़ डाली थी।

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नकद नारायण

वैसे तो इतिहास की भी सबसे अच्छी किताबों में शुमार है, ‘फिक्शन इन द आर्काइव्स’! ‘सबसे ऊपर है, मनुष्य का सत्य, कहा था कवि गुरु ने!’

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नाट्यालोचक नरनारायण राय

डाॅ. राय के शब्दों में उनकी कृति ‘नाटकनामा’ (1993) साठोत्तर हिंदी नाटक के चरित्र, रूपबंध, सीमा और उपलब्धियों का एक ख़ाका है

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