गजलों के गाँव में

यही कारण है कि बीते कई वर्षों से हिंदी गजलें ‘नई धारा’ में ससम्मान प्रकाशित होती रहीं। पाठकों-गजलकारों ने ‘नई धारा’ का गजल-अंक प्रकाशित करने का दवाब भी बनाया। आखिरकार हमने सबका सम्मान करते हुए गजलों के गाँव में पर्यटन का मन बनाया और यह अंक आपके सामने है। आशा है गजलों के गाँव में हमारा पर्यटन पाठकों को पसंद आएगा।

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सब उलटा-सीधा करते हो

सब उलटा-सीधा करते हो मिलकर भी तन्हा करते होचिंगारी सी क्या अंदर है सारी रात हवा करते होघर में ज्यादा भीड़ नहीं है छत पे क्यों सोया करते हो

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चल खला में कहीं रहा जाए

चल खला में कहीं रहा जाए चुप कहा जाए चुप सुना जाएतू कभी रूह तक भिंगा हमको तू कभी रूह में समा जाएघर से निकले तो दश्त में आए अब यहाँ से किधर चला जाए

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कहानी सुन न पाओ तो कहानी देखते जाओ

कहानी सुन न पाओ तो कहानी देखते जाओ दिए जो जख्म तुमने वो निशानी देखते जाओ।बहुत से गाँवों को खोकर कहीं इक शहर बसता है तरक्की की है यह असली कहानी देखते जाओ

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खड़े तैयार हैं ‘बगुले’ सभी नदियों, फसीलों पर

खड़े तैयार हैं ‘बगुले’ सभी नदियों, फसीलों पर चुनेंगे देश द्रोही ये तो अब तेरे इशारों परपहाड़ों का भी अपनापन नहीं मंजूर अब जिनको जलाएँगे हमें अब तो वो सूरज के शरारों पर

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अब पतंगें इश्क की जम कर उड़ाओ दोस्तो

अब पतंगें इश्क की जम कर उड़ाओ दोस्तो अपने हाथों का हुनर कुछ तो दिखाओ दोस्तोकाठ की घोड़ी ने जा कर चाँद तारों से कहा इस गगन की सैर मुझको भी कराओ दोस्तो।

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