नये गजलकारों की प्रेरणा के स्रोत
हिंदी गजल के सिद्ध शायर ज्ञानप्रकाश विवेक एवं अनिरुद्ध सिन्हा इनकी गजलों की बुनावट, शिल्प एवं शैली के प्रति जितना संतोष व्यक्त करते हैं उतने ही आश्वस्त प्रसिद्ध शायर जहीर कुरैशी भी नजर आते हैं।
हिंदी गजल के सिद्ध शायर ज्ञानप्रकाश विवेक एवं अनिरुद्ध सिन्हा इनकी गजलों की बुनावट, शिल्प एवं शैली के प्रति जितना संतोष व्यक्त करते हैं उतने ही आश्वस्त प्रसिद्ध शायर जहीर कुरैशी भी नजर आते हैं।
नई सदी की गजल अपना रूप रंग बदल रही है इसमें कोई संशय नहीं है। लेकिन गजल एक नाजुक विधा है। इस पर कोई भी बोध बोझ की तरह नहीं लादा जा सकता है। शे’र के पास दो पंक्तियों की सीमित जगह है लेकिन इन दो पंक्तियों तथा उसके शब्दों के बीच एक बड़ा स्पेस होता है,
वो तो हम सब को ही आपस में लड़ा देता है दरमियाँ रख के वो चिंगारी हवा देता हैपहले देता है जख्म मुझको वो मेरा हमदम फिर मुझे अपना बताता है दवा देता हैतू जो पूछेगा कबूतर से तो क्या बोलेंगे
मिलाओ दिल से दिल को तुम यही सच्ची इबादत है अजी, इस प्यार की तो पत्थरों को भी जरूरत हैहो उसका नाम लेकर भी सदा आपस में लड़ते तुम कहाँ ये उसका सज्दा है, ये तो उससे बगावत है
चिलचिलाती धूप में ये क्यारियाँ मर जाएँगी क्यारियाँ जो मर गईं तो तितलियाँ मर जाएँगीवंश को अपने बचाना चाहते हैं किस तरह गर्भ होगा ही नहीं, जब लड़कियाँ मर जाएँगी
आदमी का जब सफर तन्हा हुआ है रास्ता उसके लिए लंबा हुआ हैखेलता है वो मेरे जज्बात से अब दिल मेरा उसके लिए ‘कोठा’ हुआ हैयह जरूरी तो नहीं मैला ही होगा