हिंदी गजल में माँ

वरिष्ठ गजलकार रवि खंडेलवाल माँ को अपने शेरों में व्यक्त करते हुए कहते हैं कि माँ को कोई जीते जी नहीं समझ सकता। माँ जब नहीं होती है, तभी माँ की कीमत समझ में आती है। माँ के बिना घर बहुत उदास और तन्हा लगता है।

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गजलों में बसी लोक भारती की आत्मा

गजलकार जो लिख रहे हैं, वह युग की माँग है और समय का आग्रह भी। गजलकार ग्राम्य जीवन का वही चित्र रेखांकित कर रहे हैं। वही समस्याएँ उठा रहे हैं, जो इस समय के ज्वलंत प्रश्न हैं। गाँव में ही और गाँव से ही भारत की विशिष्ट पहचान है।

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भरोसा वे जब से, जताने लगे है

भरोसा वे जब से, जताने लगे है क्रियाशीलता फिर दिखाने लगे हैंनहीं कर सके जो समस्या निवारण दिखा स्वप्न फिर से रिझाने लगे हैंसृजनशीलता जो न पनपा सके तो

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दुआ हो या कोई फरियाद जो भी बेपनाहों की

दुआ हो या कोई फरियाद जो भी बेपनाहों की गजल आवाज है दिल की, जुबाँ खामोश आहों कीछुपाकर बात कितना भी निगाहों को छुपा लें हम गजल पहचान ही लेती जुबाँ छुपती निगाहों कीउड़ाई धूल है हमने जो धरती रौंदकर अब तक गजल में भी तो आएगी वो थोड़ी धूल राहों की

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दिखा जो भी इशारों में, कहा वो ही इशारों में

दिखा जो भी इशारों में, कहा वो ही इशारों में हमें डर है कि बँट जाएँ इशारे भी न नारों मेंहमें कहनी ही पड़ती है इशारों में ही कहते हम सच्चाई है कहाँ शामिल जुबाँ के कारोबारों मेंचलो अब दूर चलते हैं वहाँ से देखते हैं फिर नजर आता नहीं नजदीक से कुछ भी नजारों में

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वक्त की पदचाप सुनकर देखिए

वक्त की पदचाप सुनकर देखिए सुन सकेंगे आप, सुनकर देखिएआग क्या है पूछते पानी से क्यों कह रही है भाप, सुनकर देखिएकौन है वो देवता किसका अभी चल रहा है जाप, सुनकर देखिए

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