मेरे कलाम के अक्षर संभालकर रखना
मेरे कलाम के अक्षर सँभालकर रखना जो मैं मरूँ तो मेरा घर सँभालकर रखनान मेरे दर्द को शीशा कभी बयाँ कर दे तुम अपने हाथ का पत्थर सँभालकर रखना
मेरे कलाम के अक्षर सँभालकर रखना जो मैं मरूँ तो मेरा घर सँभालकर रखनान मेरे दर्द को शीशा कभी बयाँ कर दे तुम अपने हाथ का पत्थर सँभालकर रखना
झील पर यूँ चमक रही है धूप जैसे पानी की हो गई है धूपक्यूँ है घर में अँधेरों के साये जबकि छत पर टहल रही है धूपजाने किसकी तलाश है इसको क्यूँ झरोखों से झाँकती है धूप
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास मेंपक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत इतना असर है खादी के उजले लिबास मेंआजादी का ये जश्न मनाएँ वो किस तरह जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ वो गजल आप को सुनाता हूँएक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँतू किसी रेल-सी गुजरती है मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँहर तरफ एतराज होता है मैं अगर रौशनी में आता हूँ
जब मोहब्बत का किसी शय पे असर हो जाए एक वीरान मकाँ बोलता घर हो जाएमैं हूँ सूरज-मुखी तू मेरा है दिलबर सूरज तू जिधर जाए मिरा रुख भी उधर हो जाएरंज-ओ-गम ऐश-ओ-खुशी जिस के लिए एक ही हों
फूल को खार बनाने पे तुली है दुनिया सब को अँगार बनाने पे तुली है दुनियामैं महकती हुई मिट्टी हूँ किसी आँगन की मुझ को दीवार बनाने पे तुली है दुनिया