हिंदी गजल के एक सक्रिय महारथी

‘अनिरुद्ध की गजलें अपने अलग तेवर और जुदा अंदाज के लिए जानी जाती रही हैं। वह हमें गुदगुदाती भी हैं, खरोचती भी हैं, बेचैन भी करती हैं। और सबसे बड़ी बात कि पढ़ने के बाद भी दिलो-दिमाग में तीव्र अनुगूँज छोड़ जाती हैं। यही वजह है

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है अजब ये खामुशी

है अजब ये खामुशी दे रही आवाज भीहोश हो या बेखुदी याद रहती आपकीकातिलाना हो गई आपकी ये सादगीवो मुखातिब तो रहे पर नहीं कुछ बात की

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पत्थरों से दूर जाना चाहता है

पत्थरों से दूर जाना चाहता है आइना भी मुस्कुराना चाहता हैकाटना मत इस शजर को वो परिंदा अपने बच्चों को दिखाना चाहता हैकौन अपना अब पराया कौन होगा इक पड़ोसी ये बताना चाहता है

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वक्त से खींचतान है तो क्या

वक्त से खींचतान है तो क्या मुश्किलों में ये जान है तो क्याझोंक डालोगे आग में सब कुछ बाप तेरा किसान है तो क्यामैं सुरक्षित हूँ आज पिंजरे में ये खुला आसमान है तो क्या

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तुम्हारा साथ सफर में बहुत जरूरी है

तुम्हारा साथ सफर में बहुत जरूरी है कि जैसे रौशनी घर में बहुत जरूरी हैपढ़ेंगे शौक से अखबार ये जहाँ वाले किसी का दर्द खबर में बहुत जरूरी हैहमें भी प्यार जताना अगर पड़ा उनको धड़कता दिल यूँ जिगर में बहुत जरूरी है

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ऐसी कब आदत रखता हूँ

ऐसी कब आदत रखता हूँ साफ नहीं नीयत रखता हूँबारिश होगी होने भी दो अपने सिर पर छत रखता हूँतुम दौलत रखते हो रक्खो अलमारी में खत रखता हूँनहीं बुझाऊँगा मैं दीपक

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