पराये परों से है उड़ने की आदत
पराये परों से है उड़ने की आदत अलग मंजिलों की जिन्हें है जरूरतबिखरते हुए जर्द पत्तों से पूछो है ये धूप की या हवा की शरारतउजाले कहें कुछ जरूरत नहीं थी किरण ने अँधेरों से खुद की बगाव
पराये परों से है उड़ने की आदत अलग मंजिलों की जिन्हें है जरूरतबिखरते हुए जर्द पत्तों से पूछो है ये धूप की या हवा की शरारतउजाले कहें कुछ जरूरत नहीं थी किरण ने अँधेरों से खुद की बगाव
सँभलकर राह में चलना वही पत्थर सिखाता है हमारे पाँव के आगे जो ठोकर बनके आता हैनहीं दीवार के जख्मों का कुछ अहसास इंसाँ को जो कीलें गाड़ने के बाद तस्वीरें लगाता है
झूठ जब लाजवाब होता है सच का चेहरा खराब होता हैफूल के बीच फूल-सा बनना कितना मुश्किल जनाब होता हैहर्फ-दर-हर्फ वो पढ़ा लेगा वक्त ऐसी किताब होता है
मौत को जिंदा जलाने के लिए आइए पौधा लगाने के लिएज्ञान है तो मुल्क में भी बाँटिए जिंदगी बेहतर बनाने के लिएचल चलें बिखरे पड़े विज्ञान की योजना पटरी पे लाने के लिए
देख काली घटा बैठ मत हार कर गर ये अवरोध है तो, इसे पार करवक्त है, मनचला दाब देगा, तुझे जीतने के लिए उठ तू ललकार करज्ञान उपदेश से भी बड़ा, काव्य है सीखकर यह कला जग को गुलजार करपी दुषित भावना, शांतचित्त के लिए
निरंतर, यही बात, जग को बताई कसम खा मुहब्बत की, किसने निभाईउठो तुम अभी, खुद का शव गर नहीं हो बहुत हो चुकी, देख, अब जग हँसाईपरिश्रम, उसी का, फलीभूत होता पसीने से जिसने भी, कीमत, चुकाई