सही गलत पर अड़ा हुआ है

सही गलत पर अड़ा हुआ है जो रातभर में बड़ा हुआ हैवो दौड़ने का सिखाता नुसखा अभी अभी जो खड़ा हुआ हैधरा की थाली नहीं है खाली जमीं में हिस्सा गड़ा हुआ है

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लगाकर आग बस्ती से

लगाकर आग बस्ती से, निकल जाने की आदत है जिन्हें हर बात में झूठी, कसम खाने की आदत हैंचुराकर गैर के आँसू, बना लेते हैं जो काजल सजाकर आँख में फिर से खुशी पाने की आदत हैसजीले बागबानी में, टहलने आ गए साहब जिन्हें फूलों की रंगत पे बहक जाने की आदत है

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उम्र भर अच्छाइयों ने

उम्रभर अच्छाइयों ने क्या दिया सच्चाइयों नेपर्वतों को दी बुलंदी गहरी-गहरी खाइयों नेजिंदगी का सच दिखाया शाम की परछाइयों नेदर्द की शिद्दत बढ़ा दी तेजरौ पुरवाइयों ने

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बनाते बनाते बनाएगी बेटी

बनाते बनाते बनाएगी बेटी पिता की हवेली सजाएगी बेटीघरों में अँधेरा समाने से पहले पिता घर का दीया जलाएगी बेटीमुहब्बत का पानी मुहब्बत की बगिया लगाते लगाते लगाएगी बेटी

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बड़े ताबूत में आए

बड़े ताबूत में आए हैं हमारे सौहर सभी अखबार में छाये हैं हमारे सौहरगिराये तीन बादियों को मार सीमा पर लहू से जश्न मनाये हैं हमारे सौहरथके हुए हैं, अभी और, जरा सोने दो चला के तोप जो, आए हैं हमारे सौहर

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कहाँ चाँद ऐसे बहारों में होते

कहाँ चाँद ऐसे बहारों में होते अगर सारे तारे कतारों में होतेबिछाकर बिछौना बुलाते तो साहब मुहब्बत के अंकुर दरारों में होतेबिखरते नहीं टूट गर सितारे तो सूरज के किस्से शरारों में होते

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