चुभन जी रहा हूँ

चुभन जी रहा हूँ, जलन जी रहा हूँ मैं रिश्तो में हर पल घुटन जी रहा हूँनहीं अब किसी से भी परहेज मुझको जमाने का हर इक चलन जी रहा हूँथका हूँ परायों से, अपनो से, खुद से मैं हँस-हँसके सारी थकान जी रहा हूँ

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रंग सारे उड़ गए हैं

रंग सारे उड़ गए हैं सब नजारे उड़ गए हैंरह गए हैं सिर्फ बकुले हंस सारे उड़ गए हैंवक्त ने मारा यूँ चाँटा स्वप्न सारे उड़ गए हैंयूँ चली आँधी समय की सब सहारे उड़ गए है

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वो रिश्ते मुस्तकिल हैं

वो रिश्ते मुस्तकिल हैं, यूँ तो पल-दो-पल के होते हैं समंदर और धरती से जो इक बादल के होते हैंनिगल जाती है छोटी मछलियों को हर बड़ी मछली नियम-कानून सब लागू यहाँ जंगल के होते हैं

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करें हम हमेशा ही उनकी इबादत

करें हम हमेशा ही उनकी इबादत ये जीवन हमारा है जिनकी बदौलतनहीं कोई सानी है माता-पिता का यकीनन ये करते हैं दिल से मुहब्बतचरण छू लो इनके, मिलेंगी दुआएँ इन्हें देखने भर से होती जियारत

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हिंदी गजल की विकास यात्रा

उत्तर यह भी है कि इधर जो युवा रचनाकार हिंदी गजल को अपनी नई सोच, नई दृष्टि और प्रयोगधर्मिता से समृद्ध कर रहे हैं, उनका खैरमकदम जरुरी है। हिंदी गजल में आलोचना का क्षेत्र बेशक कुछ दुर्बल है लेकिन हम इस बात से आश्वस्त हैं

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क्यों न काँपें फूस की ये बस्तियाँ

क्यों न काँपें फूस की ये बस्तियाँ तेज बारिश और तड़पती बिजलियाँदोस्त है कोई न कोई है रकीब आ रही हैं शाम से क्यों हिचकियाँउसको सपने में भी आती हैं नजर कुर्सियाँ बस कुर्सियाँ बस कुर्सियाँ

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