हमको अपनी तरह बना देना
हमको अपनी तरह बना देना शक्ल थोड़ा मगर जुदा देनाखोल आया हूँ सारे दरवाजे आज हर सिम्त से हवा देनाखुद को हमने सजा सुनाई है आप इल्जाम बस लगा देना
हमको अपनी तरह बना देना शक्ल थोड़ा मगर जुदा देनाखोल आया हूँ सारे दरवाजे आज हर सिम्त से हवा देनाखुद को हमने सजा सुनाई है आप इल्जाम बस लगा देना
ख्वाब आँखों में जो उतारे हैं तेरी दुनिया के ही नजारे हैंतुम समझते हो वे तुम्हारे हैं ये सियासत के खेल सारे हैंख्वाब ये हमसे दूर हैं इतने दूर जितने ये चाँद तारे हैं
गरचे सौ चोट हमने खाई है अपनी दुनिया से आशनाई हैजिंदगी तू अजीज है हमको तेरी कीमत बहुत चुकाई हैजिनसे कुछ वास्ता नहीं मेरा किसलिए उनकी याद आई है
अनेक गजलकार ऐसे भी हैं जिनकी गजलों में जीवनानुभव के अनेक आयाम हैं और लगता है कि गजल लिखने के लिए गजल नहीं लिख रहे हैं उनके भीतर की आवाज उनसे गजल लिखवा रही है। अदम गोंडवी तथा उन जैसे गजलकारों की लाउड गजलें तो गजल को एकांगी बनाकर छोड़ देंगी।
गजल का जो परंपरागत रूप रहा है, वह प्रेम का है। उर्दू गजल में भी हम इस परंपरागत रूप को देखते हैं। परंतु गजल के परंपरागत रूप के स्वर को हिंदी गजल ने बदला। संरचना वही रही परंतु विषय बदल गया। दुष्यंत प्रगतिशील विचारधारा के कवि थे।
बैठकर मुस्का रही हो तुम सच बहुत ही भा रही हो तुमबाँसुरी विस्मित समर्पित-सी गीत मेरा गा रही हो तुम