चंद्रमा की चाँदनी हो तुम

चंद्रमा की चाँदनी हो तुम पूर्णिमा की यामिनी हो तुमपास मेरे इस तरह बैठो मेघ में ज्यों दामिनी हो तुम

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सच लिखने का फर्ज निभाया उसने भी

सच लिखने का फर्ज निभाया उसने भी मुझ जैसे ही हाथ कटाया उसने भीजब तक था कांधे पर कोई मोल न था काट के सर अनमोल बनाया उसने भीजिस्म के हिस्से बुनियादों में झोंक दिए सारे घर का बोझ उठाया उसने भी

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रखा हुआ है पायदान दरवाजे पर

रखा हुआ है पायदान दरवाजे पर बिछा हुआ है आसमान दरवाजे परदस्तक खुद दरवाजे देने लगते हैं लिखा हुआ है खानदान दरवाजे परयादों की खुश्बू से बदन महकता है बिखर गया है जाफरान दरवाजे पर

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दर्द हालात से नहीं गुजरा

दर्द हालात से नहीं गुजरा मेरे जज्बात से नहीं गुजराऐसा मौसम है मुझमें सदियों से जो के बरसात से नहीं गुजराइतने सारे जवाब देकर भी वो सवालात से नहीं गुजराहै मेरे जेह्न में भी वो जिंदा

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नारे बाजों में गूँगे गम जैसे

नारे बाजों में गूँगे गम जैसे शोर में क्या कहेंगे हम जैसेकैसे छू कर हों धन्य हम जैसे आप हैं चाँद पर कदम जैसेहम तो हैं कर्म लीक से हटकर और वे धर्म के नियम जैसे

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अपने मित्रों के लेखे-जोखे से

अपने मित्रों के लेखे-जोखे से हमको अनुभव हुए अनोखे -सेहमने बरता है इस जमाने को तुमने देखा है बस झरोखे सेजिंदगी से न यूँ करो बर्ताव जन्म जैसे हुआ हो धोखे से

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