बाद मेरे भी ये जहाँ होगा
बाद मेरे भी ये जहाँ होगा जाने फिर आदमी कहाँ होगामेरी आवाज़ हो न हो लेकिन मेरा लिक्खा हुआ बयाँ होगा
बाद मेरे भी ये जहाँ होगा जाने फिर आदमी कहाँ होगामेरी आवाज़ हो न हो लेकिन मेरा लिक्खा हुआ बयाँ होगा
जब-जब गाँव गए पिताअकेला हुआ जब-जब पिता साथ रहे छाती भर दूब उग आईपिता को बोतल से पानी पीने नहीं आया
पत्ते-पत्ते, डाली-डाली कहते एक कहानी बोल रहीं गुमसुम शाखाएँ आँधी आने वालीअंधों की बारात चली है रस्ता कौन दिखाए
भूख कब लगना शुरू होती बग़ैर भाषा की उम्र से जानती रही माँ होंठ पर रखी हुई उँगली भर से ख़ुशियों की भाषा लिख देने का हुनर भी तो माँ ही जानती थी
मौसम की परिभाषा में बयारें समझी जाती रही जिस तरफ़ अमृत कलश पाए जाने के ब्यौरे पेश हलाहल के लिए प्रयुक्त शब्दों के भावार्थ उसी तरफ़ से जाने मैंने साँप की सरसराहट जैसी राहों पर
तुम्हारे प्यार की निशानी बस मिल नहीं रही है तो इस विकट समय में अपनी ही आँख में डूबी ज़िंदगी नहीं मिल रही मुद्रिका की निशानी से तुम पहचान ली जाती