आख़िरी पड़ाव
मेरे नाविक चलो वहाँ अब जहाँ नहीं हो कोई अपना, पर रुकना उस तट पर ही तुम जहाँ खड़ा हो मरुभूमि में
मेरे नाविक चलो वहाँ अब जहाँ नहीं हो कोई अपना, पर रुकना उस तट पर ही तुम जहाँ खड़ा हो मरुभूमि में
संपूर्ण समर्पण सा वज्र के लिए दधीचि होना मर्मान्तक पीड़ा सा दधीचि का वज्र होना... चलती हैं दोनों क्रियाएँ जन्म भर...! नियति बस हँसती है नियन्ता वो नहीं निर्भर करता…
हक़ीक़त में कमज़ोर तुम थे मैं नहीं, तुम समझ ना पाए कभी झूठ के फूस पर सुलगता ये अंगार काफ़ी है मेरे जीने के लिए
सैनिकों ने सबको उस विशेष रेलगाड़ी में बिठा लिया। स्टेशन से गाड़ी चली तो सब ने राहत की साँस ली। पर आउटर सिग्नल तक जाकर ही गाड़ी रुक गई। रुकी नहीं थी, रोक दी गई थी। पाकिस्तान पुलिस ने यह कहकर गाड़ी रोक दी थी कि ग़ैर-सैनिक गाड़ी में नहीं जा सकते। भारतीय सैनिक हिंदुओं को वहाँ छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे और पाकिस्तानी पुलिस को लग रहा था पता नहीं हिंदू अपने साथ क्या-कुछ समेट कर ले जा रहे हैं।
पके भोजन तक थी सपनों की दौड़ कबीलों में बसा आदमी प्रकृति के भयानक रूपों से डरता था मगर देश से प्यार करता था
’ उस समय अपनी दोनों रोती बहनों पर मुझे बेतरह तरस आ रहा था। रो मैं भी रही थी लेकिन ज़ाहिर था कि मुख्य अपराधी बड़ी, ‘समझदार’ बहनें ही मानी जा रही थीं।उस दिन का अपने अंदर उबलता गुस्सा मुझे अभी तक याद है, ज़्यादा अपनी बहनों की बेबसी और लाचारी पर कि उन्हें सफ़ाई देने का मौक़ा क्यों नहीं दिया जा रहा? आपलोगों ने ही तो सिखाई है हमें, बड़ों से मुँह न लगने और जवाब न देने जैसी बातें। किदवई साहब हमें ज़बरदस्ती ले गए और नुक्कड़ तक के बदले टाउनहॉल तक घुमा लाए तो हमारी ग़लती?