अँगुली हिलाओ, पंजे चलाओ

पकरू ने ‘बड़का बाबा’ की मूर्ति पर फूलों के साथ थोड़ी दारू छिड़की और अपना तीर कमान सामने भागते खरगोश पर तान छोड़ दिया।

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द्विज जार परंपरा या नव मनुवादी सिद्धांत

अगस्त-सितंबर 2014 के ‘नई धारा’ अंक में कैलाश दहिया का लेख ‘द्विज-जार’ परंपरा का कच्चा चिट्ठा ‘अक्करमाशी’ लेख पढ़ने में आया। इस लेख में यह पूरी कोशिश की गई है कि किसी भी स्थिति में ‘अक्करमाशी’ दलित रचना नहीं है। प्रकारांतर से शरण कुमार लिंबाले भी दलित नहीं हैं–इसे भी सिद्ध किया जाए।

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दलित आत्मकथाओं से डरे लोग

हिंदी साहित्य में जब से दलितों के दुख-दर्द सामने आए हैं, साहित्य को नई ऊर्जा मिली है। साथ ही मिले हैं वीरभारत तलवार और सुधीश पचैरी जैसे सहृदय आलोचक जिन्होंने अपने ढंग से दलितों की पीड़ा और विमर्श को सराहा है। इस प्रक्रिया में नामवर सिंह का मुखौटा भी गिरा है और इन्हीं के शिष्य पुरुषोत्तम अग्रवाल के किंवदंती और प्रक्षिप्त लेखन का तमाशा साहित्य जगत ने देखा है। दलितों ने अपनी आत्मकथाओं के माध्यम से अपने दुख-दर्द बताए हैं।

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अफ्रीका

अफ्रिका एक ऐसी रचना है, जिसमें महाकवि ने बिल्कुल पिछड़े महादेश अफ्रिका के निर्दोष, निर्बोध आदिमवासियों के ऊपर होनेवाले तथाकथित सभ्य पाश्चात्य जगत के अमानुषिक व्यवहार के प्रति अपना संवेदनशील विरोध प्रगट किया था

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श्रद्धा-निवेदन

साहित्य के स्वर्णयुग के प्रवर्तक प्रातस्मरणीय स्वर्गीय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मशती के इस शुभ अवसर पर हम अपनी आंतरिक श्रद्धा उस महामनीषी की पुनीत स्मृति को निवेदित करते हैं।

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बहती धारा : चतुर्मुखी कसौटी

धारा बहती चली जा रही है–साहित्य की धारा वेग से आगे बढ़ती जा रही है। कदम-कदम पर इसे मूल्यगत संघर्षों से सामना करना पड़ रहा है

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