खानाबदोशी
इस खानाबदोशी में धूप से बचने के लिए मुझे एक छाते की दरकार थी जबकि सारे रंगीन छाते मुल्क के बादशाह के महल में सजाकर रखे गए थे
इस खानाबदोशी में धूप से बचने के लिए मुझे एक छाते की दरकार थी जबकि सारे रंगीन छाते मुल्क के बादशाह के महल में सजाकर रखे गए थे
जो बदल दे आप अपना पाट, अपना द्वार यह संबंध क्या वैसी नदी है? और फिर इन बादलों की तरह नित घिरना, बरसना और छँट जाना क्या नहीं आकाश की यह त्रासदी है?
सचकहीं कुछ भी नहीं थाबस हवा के पाँवपत्थर हो गए थेतड़पकर रह गए थे शब्दमन के हाशिये परकाँपते लब परछुटता-सा जा रहा था
वह जन्मेगा बार बार राजपथ की कंकरीली छाती चीर कचनार दूब की तरह!वह गाएगा क्योंकि गाना ही सभ्यता की
फूलों के परिधान पहन जब-जब सरहुल आता है माँदर, ढोल, नगाड़े बजते जंगल भी गाता है पाँवों में थिरकन, तन में सिहरन आँखों में ख्बाब!
मैं मौन हूँ, मैं खामोश हूँ, मैं चुप हूँ चराचर जगत डूबा गहन सन्नाटे में मैं अनंत शून्य हूँ आकाश समेटे धरा पर