आज तनहाई में यादों के तले
आज तनहाई में यादों के तले मैंने हासिल किये हैं ग़म के क़िले
गीत मुखर हों
मुझमें गीत मुखर हों जैसे मन का मीत पुकारे! सुधि अपनी जो टाँक-टाँक दे
हिंदी के कहानी-साहित्य के इतिहास के साथ एक मजाक
आज कहानी-लेखन के साथ-साथ, कहानी-संबंधी चर्चा-परिचर्चा का जो सिलसिला बँध गया है, उससे अपने को एकदम तटस्थ रख पाना किसी भी जागरूक कहानीकार के लिए न तो संभव है, न शुभ ही।
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