हिंदी के कहानी-साहित्य के इतिहास के साथ एक मजाक

आज कहानी-लेखन के साथ-साथ, कहानी-संबंधी चर्चा-परिचर्चा का जो सिलसिला बँध गया है, उससे अपने को एकदम तटस्थ रख पाना किसी भी जागरूक कहानीकार के लिए न तो संभव है, न शुभ ही।

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