नामवर सिंह एक आलोचक का आत्म-संघर्ष
वास्तव में जिस नामवर सिंह की आलोचना का लोहा माना जाता है, उसकी निर्मिति के पीछे एक आलोचक के रूप में उनका आत्म-संघर्ष है। ‘कविता के नए प्रतिमान’ के प्रथम संस्करण की भूमिका में वे लिखते हैं–‘कविता के नए प्रतिमान आलोचना के उस सहयोगी प्रयास का अंग है,