साँप की आँखें

मोटे चावल का भात चने और खेसारी के साग के साथ सानकर हेमा बड़े-बड़े निवाले निगलती और आँगन में पसरती धूप को देखती जाती थी, तभी अद्धा का घंटा बजा। बाहर बच्चे शोर मचा कर खेल रहे थे। हेमा को लगा जैसे अबतक स्वाद देने वाले अन्न के ग्रास उसके कंठ में अटक रहे हों।

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श्रव्य काव्य

सुरशिल्पी भले हो न हो किंतु स्वरशिल्पी होना तो उनके लिए आवश्यक था। चारण और वंदीजन, जो कवियों की रचनाएँ पढ़कर सुनाया करते थे अथवा जो लोग रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाओं को गाकर श्रोताओं में विस्मययुक्त भक्ति की भावना भरा करते थे

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