वह साहित्यिक तपस्वी : मृत्युशय्या पर!!

आज पटना के टी.बी. अस्पताल के जिस बिस्तरे पर हिंदी-साहित्य के हमारे महान तपस्वी, बिहार के हिंदी लेखकों की पिछली पुस्त के स्रष्टा, ऋषियों के जीवन की परंपरा के अंतिम प्रतीक, आचार्य शिवपूजन सहाय जी रखे गए हैं

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बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं

बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं छाती कराहती है सब की, इंसान आज का बागी है।

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