ताजमहल की बुनियाद
आज से तीन सौ वर्ष से अधिक हुए, जब शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज की यादगार में विश्व का आश्चर्य ताजमहल निर्मित किया था।
आज से तीन सौ वर्ष से अधिक हुए, जब शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज की यादगार में विश्व का आश्चर्य ताजमहल निर्मित किया था।
फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं? मुस्कराते अधर दल पर
इन ‘वादों’ की प्रवृत्ति हममें प्रतिहिंसा की भावना जागरुक करती है जो कला और साहित्य के कलाकार और साहित्यकार को कोसों दूर हटा दे सकती है।
पुजारी की आँख खुली! घबराई आँखों से चारों तरफ देखा! कुछ नहीं! सब तो ठीक था। शयन-कक्ष का द्वार बंद था। शमा मधुर प्रकाश बिखेर रही थी। “कुछ नही! भ्रम है मेरा!” पुजारी ने अपने को संतोष देते हुए करवट बदली!
रामचरित्र की चर्चा हर भाषा के साहित्य में चमकती ही है; वह संथाली-भाषा के साहित्य में भी ‘नहीं’ की शून्यता को बखूबी पूरा करती है।
इमाम साहब ने मस्जिद का द्वार खोला। चारों चट्टाइयाँ पानी से भींग गई थीं। बाप-बेटी एक दूसरे की ओर ऐसे देखने लगे जैसे बूझ रहे हों ‘अब क्या होगा?